Monday, December 15, 2014

'खुमारी' (कविता) - 'राघव' बंसल RVS

लगता है उतरी नहीं खुमारी,
अगर अंतर की आवाज नहीं सुन पाता हूँ |

लगता है उतरी नहीं खुमारी,

अगर क्षुद्र आकर्षणों के पीछे खुद को पाता हूँ |

बीत रहा समय जो लिया है उधार,

क्या ये बात नहीं समझ पाता हूँ ?




टाल-टाल कर छोटे काम,

पहाड़ों सा बोझ बनाता हूँ |

मगर शुक्र है उस शक्ति का,

जिससे हर बार नए अवसर पाता हूँ |

बहुत भटक लिया इधर - उधर,

अब उद्यत हो आता हूँ |

संशयों के भ्रम जालों से अब,

खुद को उबरा हुआ पाता हूँ |

लगता है उतर रही है खुमारी,

क्योंकि हाँ, अब नींद से जागा हूँ ||

1 comment:

  1. Latest Update:- यूनिवर्सिटी वाइज rajasthan university ba 3rd year time table चेक करने का डायरेक्ट लिंक यहाँ अपलोड कर दिये गये है |

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