Wednesday, April 13, 2011

वो आखिरी शाम छः साल के सफ़र की


आप शायद कुछ सोचने ही वाले हों इससे पहले ही मैं स्पष्ट कर दूं की ये 
बात हो रही है मेरे और विद्या मंदिर के बीच के छः साल लम्बे सफ़र की आखिरी शाम यानि की विदाई समारोह की और इस हेतु लिखे गए स्पीच की जो इस प्रकार है -
चार्वाक का दर्शन कहता है की वे लोग मूर्ख हैं जो सुख को भूल जाते हैं क्योंकि यह तो दर्द के साथ मिश्रित है एक किसान जिस तरह से छिलकों से दानों को अलग कर अनाज को रख लेता है और भूसे को फेंक देता है उसी तरह एक ज्ञानी व्यक्ति को चाहिए की वह सुखों का आनंद उठाये और दर्द को भूल जाये वे लोग जो इस संसार के त्वरित सुखों को छोड़ कर माध्यम और स्वर्ग के अनिश्चित सुखों को पाने की कामना करते हैं,ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने को समर्पित करते हैं 
        
चार्वाक  का दर्शन एक पक्षीय है यह विश्वास करना कोरी मूर्खता है की मनुष्य के प्रयासों का लक्ष्य पाशविक अभिलाषायों की तुष्टि मात्र है और इसी लिए दैविक सत्ता का अहसास और विश्वशनीय तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन दर्द से मुक्ति दिलाता है हमारे तथाकथित तत्त्व चेतना रहित होते हैं अतः चेतना उनके मिश्रण का परिणाम नहीं है यह कहना गलत है की चैतन्यता का विनाश होता है अथवा विद्यमान रहती है जबकि मादकता को उत्पन्न भी किया जा सकता है और हटाया भी जा सकता है Iमादकता के भावों से भाव प्रवण हुआ जा सकता है लेकिन चैतन्यता से विहीन नहीं 
             सभी  चीजों का विनाश होना है या चीजें विलुप्तता की स्थिति में पहुँच जानी है लेकिन किसी भी चीज का हमेशा के लिए विनाश नहीं होना है और यह है यादें हमारे प्यारे विद्या मंदिर की 


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