Sunday, April 24, 2011

Homage to Satya Sai Baba

सत्य साईं बाबा अब परलोक सिधार गए हैं अपनी ही भविष्यवाणी को असत्य साबित करके | और अपने पीछे छोड़ गए हैं 40,000 करोड़ की संपत्ति के मालिक श्री साईं सेवा ट्रस्ट को | मैंने पहली बार सत्य साईं बाबा का नाम अपनी दादी के मुह  से सुना था जैसे कि आप अपेक्षा कर सकते हैं | शुरुआत में तो मेरे विद्रोही स्वभाव ने सीधे ही सत्य साईं का अस्तित्व नकारना चाहा पर जैसे जैसे मैंने उनके बारे में पढ़ा, सुना तो जानने समझने के बाद यही विश्वास कर सका कि "आधी हकीक़त आधा फ़साना "| बेशक साईं बाबा ने अपने भक्तों कि श्रद्धा और समर्पण से सन 1964 में बनाये गए श्री सत्य  साईं  ट्रस्ट के माध्यम से EduCare कार्यक्रम के द्वारा 171 देशों में शिक्षण संस्थानों की नीव डाली और ये संस्थान टॉप पर हैं अपने देश की ही बात करें श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय देश का एकमात्र संस्थान है जिसे U.G.C. ने A++ रेटिंग दी है| साईं और विवाद हमेशा से एक दूसरे के मित्र रहे है लेकिन हमें इससे अधिक सरोकार नहीं है परन्तु एक बात तो मैं अवश्य कहना चाहूँगा कि साईं के इन वचनों "मैं भगवान हूँ और तुम भी भगवन हो फर्क इतना है कि मुझे ये पता है और तुम्हे नहीं" के सम्मोहन से उनके भक्त भले ही न बच पाए हो लेकिन हमें इस उक्ति के यथार्थ तक पहुंचना होगा| इस उक्ति में एकमात्र प्रमुख शब्द है 'भगवान'| महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सत्य साईं कि द्रष्टि में भगवान का क्या अर्थ है| हर इंसान भगवान है अर्थात हर जीवात्मा में परमात्मा का वास है परन्तु आत्मज्ञान ऐसी वस्तु है जो आत्मा और परमात्मा के मध्य फर्क उत्पन्न करती है| उनके महाप्रयाण के पश्चात् मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि बिना किसी स्वार्थ के केवल मानवता कि सेवा करने के लिए अपना जीवन अर्पित करना एक बहुत बड़ी वस्तु है जिसे भगवान सरीखा इंसान ही कर सकता है| स्वामी रामकृष्ण  परमहंस जी के शब्दों में कोई भी तब तक भगवान के अस्तित्व को महसूस नहीं कर सकता जब तक उसके अन्दर रंचमात्र भी इच्छाएं हैं| सुई के छेद से तब तक धागा पार नहीं हो सकता जब तक उसका कोई भी कतरा छेद से बाहर रहेगा| वस्तुतः सत्य साईं बाबा के अन्दर इच्छाएं नहीं थी इसलिए वह भगवान को महसूस कर सके और पुट्टपर्थी में रहकर भी संपूर्ण विश्व की शिक्षा स्वास्थ्य और जीवन (जल) हेतु कार्य करके अमर हो गए हैं|

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