Tuesday, May 17, 2011

Investors be Cautious It's Silver Game


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                                 courtesy : Hindustan Daily Hindi News Paper 


Sunday, April 24, 2011

How Many Earths in Universe : 2 Billions

                                                                         courtesy Hindustan Daily News Paper

SatyaNarayan to SATYA SAI BABA

                                                                            courtesy Hindustan daily news paper

WHAT is NEXT : Satya Sai Trust

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Homage to Satya Sai Baba

सत्य साईं बाबा अब परलोक सिधार गए हैं अपनी ही भविष्यवाणी को असत्य साबित करके | और अपने पीछे छोड़ गए हैं 40,000 करोड़ की संपत्ति के मालिक श्री साईं सेवा ट्रस्ट को | मैंने पहली बार सत्य साईं बाबा का नाम अपनी दादी के मुह  से सुना था जैसे कि आप अपेक्षा कर सकते हैं | शुरुआत में तो मेरे विद्रोही स्वभाव ने सीधे ही सत्य साईं का अस्तित्व नकारना चाहा पर जैसे जैसे मैंने उनके बारे में पढ़ा, सुना तो जानने समझने के बाद यही विश्वास कर सका कि "आधी हकीक़त आधा फ़साना "| बेशक साईं बाबा ने अपने भक्तों कि श्रद्धा और समर्पण से सन 1964 में बनाये गए श्री सत्य  साईं  ट्रस्ट के माध्यम से EduCare कार्यक्रम के द्वारा 171 देशों में शिक्षण संस्थानों की नीव डाली और ये संस्थान टॉप पर हैं अपने देश की ही बात करें श्री सत्य साईं विश्वविद्यालय देश का एकमात्र संस्थान है जिसे U.G.C. ने A++ रेटिंग दी है| साईं और विवाद हमेशा से एक दूसरे के मित्र रहे है लेकिन हमें इससे अधिक सरोकार नहीं है परन्तु एक बात तो मैं अवश्य कहना चाहूँगा कि साईं के इन वचनों "मैं भगवान हूँ और तुम भी भगवन हो फर्क इतना है कि मुझे ये पता है और तुम्हे नहीं" के सम्मोहन से उनके भक्त भले ही न बच पाए हो लेकिन हमें इस उक्ति के यथार्थ तक पहुंचना होगा| इस उक्ति में एकमात्र प्रमुख शब्द है 'भगवान'| महत्वपूर्ण सवाल यह है कि सत्य साईं कि द्रष्टि में भगवान का क्या अर्थ है| हर इंसान भगवान है अर्थात हर जीवात्मा में परमात्मा का वास है परन्तु आत्मज्ञान ऐसी वस्तु है जो आत्मा और परमात्मा के मध्य फर्क उत्पन्न करती है| उनके महाप्रयाण के पश्चात् मैं यह अवश्य कहना चाहूँगा कि बिना किसी स्वार्थ के केवल मानवता कि सेवा करने के लिए अपना जीवन अर्पित करना एक बहुत बड़ी वस्तु है जिसे भगवान सरीखा इंसान ही कर सकता है| स्वामी रामकृष्ण  परमहंस जी के शब्दों में कोई भी तब तक भगवान के अस्तित्व को महसूस नहीं कर सकता जब तक उसके अन्दर रंचमात्र भी इच्छाएं हैं| सुई के छेद से तब तक धागा पार नहीं हो सकता जब तक उसका कोई भी कतरा छेद से बाहर रहेगा| वस्तुतः सत्य साईं बाबा के अन्दर इच्छाएं नहीं थी इसलिए वह भगवान को महसूस कर सके और पुट्टपर्थी में रहकर भी संपूर्ण विश्व की शिक्षा स्वास्थ्य और जीवन (जल) हेतु कार्य करके अमर हो गए हैं|

Wednesday, April 13, 2011

Success Mantra by A.P.J.Abdul Kalam

                 

वो आखिरी शाम छः साल के सफ़र की


आप शायद कुछ सोचने ही वाले हों इससे पहले ही मैं स्पष्ट कर दूं की ये 
बात हो रही है मेरे और विद्या मंदिर के बीच के छः साल लम्बे सफ़र की आखिरी शाम यानि की विदाई समारोह की और इस हेतु लिखे गए स्पीच की जो इस प्रकार है -
चार्वाक का दर्शन कहता है की वे लोग मूर्ख हैं जो सुख को भूल जाते हैं क्योंकि यह तो दर्द के साथ मिश्रित है एक किसान जिस तरह से छिलकों से दानों को अलग कर अनाज को रख लेता है और भूसे को फेंक देता है उसी तरह एक ज्ञानी व्यक्ति को चाहिए की वह सुखों का आनंद उठाये और दर्द को भूल जाये वे लोग जो इस संसार के त्वरित सुखों को छोड़ कर माध्यम और स्वर्ग के अनिश्चित सुखों को पाने की कामना करते हैं,ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने को समर्पित करते हैं 
        
चार्वाक  का दर्शन एक पक्षीय है यह विश्वास करना कोरी मूर्खता है की मनुष्य के प्रयासों का लक्ष्य पाशविक अभिलाषायों की तुष्टि मात्र है और इसी लिए दैविक सत्ता का अहसास और विश्वशनीय तरीके से अपने कर्तव्यों का निर्वहन दर्द से मुक्ति दिलाता है हमारे तथाकथित तत्त्व चेतना रहित होते हैं अतः चेतना उनके मिश्रण का परिणाम नहीं है यह कहना गलत है की चैतन्यता का विनाश होता है अथवा विद्यमान रहती है जबकि मादकता को उत्पन्न भी किया जा सकता है और हटाया भी जा सकता है Iमादकता के भावों से भाव प्रवण हुआ जा सकता है लेकिन चैतन्यता से विहीन नहीं 
             सभी  चीजों का विनाश होना है या चीजें विलुप्तता की स्थिति में पहुँच जानी है लेकिन किसी भी चीज का हमेशा के लिए विनाश नहीं होना है और यह है यादें हमारे प्यारे विद्या मंदिर की 


धरती पर विचरते दूसरे ग्रह के प्राणी


  धरती पर विचरते दूसरे ग्रह के प्राणी 

आप शायद सोच रहे हो की ये तो वही पुराना किस्सा है और इसका सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं है मगर जरा फिर से सोचिये ये किसी दूसरे ग्रह के प्राणी और कोई नहीं हम ही है क्योकि हमारा वास्ता अब न तो अपने पड़ोसियों,नगरवासियों और न ही मानव जाति से रह गया है क्योकि अब तो हमें केवल अपनी चिंता है देश की जिम्मेदारी तो सरकार की है विश्व की जिम्मेदारी तो दूसरों की है हमें इन सबसे क्या?  क्या हमारे पास दूसरा कोई काम नहीं है जो इन सबकी चिंता  करें हमारे इन्ही सदविचारों ने हमारी भूमि को इस कदर दूषित कर दिया है की शायद आगे की पीढ़ियों को धरती की याद दिलाने के लिए हमें केवल तस्वीरों से ही काम चलाना पड़ेगा क्योकि सुदूर अंतरिक्ष से धरती तक आना मार्क शटलवर्थ जैसों के लिए ही संभव हो सकेगा 
कम से कम और कुछ नहीं कर सकते प्रदूषण रोक नहीं सकते तो और फैलाएं तो नहीं  अपनी जिम्मेदारी को समझें अन्यथा हम सब में और परग्रहियों में अंतर ही क्या रह जायेगा.